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ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

रात की स्याही मेंलिपट गयी कुछ ख्वाहिशेंऔर लिपट गयी मैं इन् ख्वाहिशों में। चंद रोज़ जब आँख खुली तोदेखा ख्वाब थी वो ख्वाहिशें जोलिपटे चादर की तह की तरह खुल…

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