ख्वाहिशें
रात की स्याही मेंलिपट गयी कुछ ख्वाहिशेंऔर लिपट गयी मैं इन् ख्वाहिशों में। चंद रोज़ जब आँख खुली तोदेखा ख्वाब थी वो ख्वाहिशें जोलिपटे चादर की तह की तरह खुल…
रात की स्याही मेंलिपट गयी कुछ ख्वाहिशेंऔर लिपट गयी मैं इन् ख्वाहिशों में। चंद रोज़ जब आँख खुली तोदेखा ख्वाब थी वो ख्वाहिशें जोलिपटे चादर की तह की तरह खुल…
उसकी दृष्टि मलिन हो गयीखुले तन को दिखाती वोऔर व्यसनी हो गयी। तिररस्कर, घृणा मादकउन्माद का आवाहन करती वोऔर वासनामयी हो गयी। चीरहरण करती दृष्टियाँबेबसी की कहती कहानियाँ।निडर प्रयत्न करती…