आत्मा तुम एक प्रेरणा हो,
तन मन की एक वीणा हो।
तुमसे झंकृत सारा मन,
अर्पित तुम पर ये जीवन।
मन कुंठा तुमसे नहीं छुपी,
दुःख की लड़ी तुम ही से जुड़ी।
फिर भी धैर्य बधाति तुम,
मन में विश्वास जगती तुम।
तुम सत्य धर्म की डंका हो,
तुम हार जीत की लंका हो।
आत्म द्वंद की वीरा धीरा,
मन पथिक के पथ की हरती पीड़ा।
तुम से ही नर नारायण हो,
तुम से ही शव शिवसा शाश्वत हो।
ॐ तत्त्व की तुम ज्ञाती,
तुमसे जुड़ी नर क्रांति भ्रान्ति।
अज्ञान ज्ञान की माला हो,
अद्रिश्य डीप की ज्वाला हो।
आत्मा तुम एक प्रेरणा हो,
तन मन की एक वीणा हो।
– सुनीता सिंह।