बोधगया में,
बोधि वृक्ष के नीचे,
बुद्धत्व को प्राप्त,
तथागत बुद्ध शांत हो चले थे।
ज्ञान से परिपूर्ण प्रशांत हो चले थे।
प्राप्तव्य कुछ भी शेष न था,
कामना कुछ अवशेष न था।
सब कुछ पा लिया था,
सत्यत्व को अपना लिया था।
फिर भी, जगत कल्याण की खातिर
दुःख से त्राण की खातिर
बुद्ध को चलना पड़ा था
‘शून्य’ से निकलना पड़ा था,
जगत के पीर को हरने के लिए
चरैवेत् चरैवेत् कहना पड़ा था।
रुदल सिंह
![Bodhi Vruksh by- Rudal Singh](https://boseartx.com/wp-content/uploads/2022/08/Add-a-heading.jpg)