सांई जग झूठा तू सच्चा
जग की नैया भूल भुलैया
पर नाविक तू अच्छा,
सांई जग झूठा।
जगत बना व्यापार सर्वथा,
बाँटू किससे मन की ब्यथा
हानि लाभ का जोड़ घटाना
जीवन भर की सत्य कथा
काव्य कल्पना नहीं कथा में
कथ्य पात्र सब सच्चा
सांई जग झूठा ..
मैं तुझसे कुछ रूठा रूठा
तू मुझसे ना रूठा
तू ही सच्चा दीन इलाही
मैं तो झूठा झूठा
तेरे सारे बन्धन पक्के
जग का धागा कच्चा
साई जग झूठा तू साँचा। ।
रुदल सिंह