judemental society by- Monil Gami

तुम तो लड़के हो न…


वो करीब ७ साल पुरानी बात होगी,
अगर याद करू तो शायद
मेरी उम्र करीब १०-११ साल की होगी।
विद्यालय से छूटकर में यूँही अपने दोस्तों के साथ
दौड़ लगते हुए गिर पड़ा।
मेरी आखें नम और मेरे पैर दर्द में बहने लगे,
सब मुझ पर हस रहे थे, और मेरी माँ
उन्होंने सबको अंदेखा कर मुझसे कहा,
“अरे रोते क्यों हो? तुम तो लड़के हो।”

उस दिन के बाद करीब १ हफ्ते तक
मुझे रोने से डर लगने लगा।
सोचने लगा की दोस्त क्या कहेंगे,
की यह तो लड़कियों की तरह रोता है।
तो मैंने मेरी मुस्कान को ही अपना मुखौटा बना लिया।
हर छोटी बात पर,
हर चुटकुले पर,
हर समय, हर दिन मैंने अपना मुखौटा पहने रखा।
पर एक दिन अचानक यही हसी मेरे पिताजी ने देखली
और कहा, “अरे तुम इतना क्यों हस रहे हो,
इतना तो लड़कियां हस्ती है, और तुम तो लड़के हो।”

आज ७ साल बीत चुके है, और मुझे बचपन की यादें ने नहीं,
बल्कि यह ४ शब्द “तुम तो लड़के हो” ने घेर लिया है।

आज भी हर बात पर रोका जाता है।
हर बात पर टोका जाता है।
अपने आप में छुपे उन जस्बातों को
दफ़न करने कहा जाता है।
अब तो अपनी हसी को दबाये रखने कहा जाता है।
और अपने आसुओं को छिपाने कहा जाता है।
सिर्फ उस अँधेरे को पता है
की में कैसे रोता हु,
उस चाँद को पता है की
मेरी हसी कैसी खिलती है।
कमरे में ४ दीवारी ने मेरी कहानियां रट ली है।

जहाँ लड़को को किसी की ढाल बनने कहा जाता है
वह उस लड़के को कोई नहीं पूछता की तुम्हारी ढाल कौन है।
जहाँ रौशनी का साथ होना चाहिए वहाँ इस लड़के का साथ
तो गहरे अंधेरों ने दिया।
जब रौशनी ने नहीं अपनाया
तब वो अँधेरा मरहम बनके रोज़ रात
मेरी अनकही अनसुनी कहानियां सुनता।
रात गुज़रती तो सिर्फ इन् आसुओं के बाहों में
क्योकि अगर यही मोती दिन में टपके
तो दुनिया हमे नाज़ुक समझकर गिरा देगी।

खाना बनाने से लेकर
नाच गाने तक,
कभी थोड़ा झुक गए
थक कर रुक गए
तो वो ४ शब्द हम लड़को के कानो में गूंजने लगते है।
इंसान बनना तो शायद फिर भी आसान हो।
पर लड़का बनना ये किसी लुकाछिपी के खेल से कम नहीं।

क्यों हमसे कोई बैठकर हमारी तकलीफों को नहीं सुनता?
क्यों हमारी बातों में कोई जस्बात नहीं ढूंढ़ता?
क्यों हमे ही सब कहते है की, “यह तो लड़का है, सेह लेगा।”
अरे पूछकर तो देखो
इस लड़के का दिल तुम्हारी सोच से कई गुना गहरा है।
उस शांत काले साये में है जिसे अब शायद
रौशनी के नाम से तक नफरत सी हो गयी है
इस दुनिया की सोच से नफरत सी हो गयी है।

और कभी समय मिलने पर यह ज़रूर सोचना की
लड़के क्यों छोटी बातों पर गौर करते है।
और क्यों बिना कुछ कहे वो अपने आप को उन बातों में पिरोते है।

– मोनिल गामी
Monil Gami
Monil Gami
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