प्रभु का प्यार सागर
की लहरों पर सवार
मेरे करीब आता है,
मेरी प्रार्थना से पूर्व ही,
मुझे सस्नेह नहलाता है,
आषाढ़ के घने बादलों से
अभिभूत मयूर के नृत्य स्वरों में,
कृष्ण की बाँसुरी बजती है
पर्वत के सुदूर शिखर पर
चाँद से मिलने को चाँदनी सजती है।
मुझे प्रिय है,
राम की छवि,
कृष्ण की लीला,
एवं शिव का नृत्य जो,
नृत्य नही साधना है।
जगत को साधने की
संसार को बनाने की
ईश्वरीय आराधना है।
रुदल सिंह
![Prabhu Ka Sneh by Rudal Signh](https://boseartx.com/wp-content/uploads/2022/08/Prabhu-ka-sneh.jpg)