Prabhu Ka Sneh by Rudal Signh

प्रभु का स्नेह

प्रभु का प्यार सागर

की लहरों पर सवार

मेरे करीब आता है,

मेरी प्रार्थना से पूर्व ही,

मुझे सस्नेह नहलाता है,

आषाढ़ के घने बादलों से

अभिभूत मयूर के नृत्य स्वरों में,

कृष्ण की बाँसुरी बजती है

पर्वत के सुदूर शिखर पर

चाँद से मिलने को चाँदनी सजती है।

मुझे प्रिय है,

राम की छवि,

कृष्ण की लीला,

एवं शिव का नृत्य जो,

नृत्य नही साधना है।

जगत को साधने की

संसार को बनाने की

ईश्वरीय आराधना है।

रुदल सिंह
Rudal Singh
Rudal Singh
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