राधा के कृष्ण

Radha ke Krishna by Rudal Singh

हे सखी ! वो यशोदा का लाल, चपल, चंचल, चतुर बाल कहाँ खो गया? आज वो काँवरी पर टंगी मटकी से मक्खन चुराने नही आया, न खुद खाया, न ग्वाल बालों को खिलाया, क्या अब वो बैरागी हो गया है?…

बोधि-वृक्ष

Bodhi Vruksh by- Rudal Singh

बोधगया में, बोधि वृक्ष के नीचे, बुद्धत्व को प्राप्त, तथागत बुद्ध शांत हो चले थे। ज्ञान से परिपूर्ण प्रशांत हो चले थे। प्राप्तव्य कुछ भी शेष न था, कामना कुछ अवशेष न था। सब कुछ पा लिया था, सत्यत्व को…

जीवन मृत्यु

Jeevan Mrityu by Rudal Singh

मैंने मृत्यु को देखा है, करीब से महसूस किया है, और मृत्यु से डरा भी हूँ। मैं मृत्यु से डरता हूँ, क्योंकि डरना मेरी प्रकृति है, मृत्यु सत्य है, सहज है, और मरना मेरी नियति है।। मृत्यु के भय में…

प्रभु का स्नेह

Prabhu Ka Sneh by Rudal Signh

प्रभु का प्यार सागर की लहरों पर सवार मेरे करीब आता है, मेरी प्रार्थना से पूर्व ही, मुझे सस्नेह नहलाता है, आषाढ़ के घने बादलों से अभिभूत मयूर के नृत्य स्वरों में, कृष्ण की बाँसुरी बजती है पर्वत के सुदूर…

प्रभु तू साँंचा

Prabhu tu Saancha by Rudal Singh

सांई जग झूठा तू सच्चा जग की नैया भूल भुलैया पर नाविक तू अच्छा, सांई जग झूठा। जगत बना व्यापार सर्वथा, बाँटू किससे मन की ब्यथा हानि लाभ का जोड़ घटाना जीवन भर की सत्य कथा काव्य कल्पना नहीं कथा…

मैं सत्य देखता हूँ

Truth poem by Rudal Singh

मैं कोई सत्यवादी नहीं सत्यदर्शी हूँ। सत्य देखता हूँ, सत्य दिखाता हूँ, सत्य की राह पर चलना सिखाता हूँ। मेरा सत्य आत्म प्रवंचना नहीं, न ही बेबुनियाद है। सत्य की पहली पाठशाला मुझे आज भी याद है। वेद शास्त्रों का…

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